प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता में भारतीय किसानों, डेयरी उत्पादकों और सांस्कृतिक मूल्यों के हितों की रक्षा के लिए कड़ा रुख अपनाया है। इस संबंधी पत्रकारों को संबोधन करते हुए भाज़पा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विज़य सांपला ने कहा कि पीएम मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि अमेरिकी दबाव में टैरिफ घटाने या स्वास्थ्य मानकों में ढील देने का सवाल ही नहीं उठता।
तीन मुख्य कारण जिन पर पीएम मोदी का निर्णय आधारित
1️⃣ 8 करोड़ से अधिक डेयरी किसानों की आजीविका की रक्षा
अमेरिकी दूध और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ कम करने से सब्सिडी युक्त विदेशी दूध भारतीय बाजार में आ जाएगा। इससे दूध के दाम गिरेंगे और छोटे व सीमांत डेयरी किसान, जिनकी 80% आय दूध पर निर्भर है, बुरी तरह प्रभावित होंगे। अमूल, नंदिनी और वेरका जैसी सहकारी डेयरियों पर भी अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा।
2️⃣ खाद्य संप्रभुता और उद्योगों की सुरक्षा
विदेशी आयात पर निर्भरता से भारत की खाद्य आत्मनिर्भरता कमजोर होगी। स्थानीय दूध आपूर्ति श्रृंखला बाधित होगी, जिससे मिठाई, पनीर और प्रोसेसिंग उद्योग प्रभावित होंगे। यह “मेक इन इंडिया” डेयरी सेक्टर के विकास में रुकावट डालेगा।
3️⃣ धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा
अमेरिकी हार्मोन युक्त दूध या मांसाहारी आहार से पले पशुओं के दूध का आयात हिंदू आस्था और ‘गौ माता’ की पवित्रता के विपरीत है। पीएम मोदी ने साफ कहा कि यह केवल आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संप्रभुता से जुड़ा मामला है।
क्यों अहम है यह फैसला
- अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे झुकने के बजाय भारत ने अपनी नीतियों, मानकों और मूल्यों पर अडिग रहकर स्वायत्तता कायम रखी।
- किसानों को प्राथमिकता देते हुए विदेशी कॉर्पोरेट हितों पर अंकुश लगाया गया।
- भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं की रक्षा को आर्थिक नीति का हिस्सा बनाया गया।
निष्कर्ष
पीएम मोदी का यह साहसिक निर्णय छोटे किसानों, डेयरी सहकारी समितियों और भारतीय सांस्कृतिक विरासत को असमान व्यापार समझौतों की बलि चढ़ने से बचाएगा। यह स्वदेशी हितों, सांस्कृतिक गौरव और आर्थिक न्याय की जीत है।